1 | 1 | गाइये गनपति जगबंदन। | श्रीगणेश-स्तुति | बिलावल |
2 | 2 | दीन-दयालु दिवाकर देवा। | सूर्य-स्तुति | बिलावल |
3 | 3 | को जाँचिये संभु तजि आन। | शिव स्तुति | बिलावल |
4 | 4 | दानी कहुँ संकर-सम नाहीं। | शिव स्तुति | धनाश्री |
5 | 5 | बावरो रावरो नाह भवानी। | शिव स्तुति | धनाश्री |
6 | 6 | जाँचिये गिरिजापति कासी। | शिव स्तुति | रामकली |
7 | 7 | कस न दीनपर द्रवहु उमाबर। | शिव स्तुति | रामकली |
8 | 8 | देव बड़े,दाता बड़े, संकर बड़े भोरे। | शिव स्तुति | रामकली |
9 | 9 | सिव! सिव! होइ प्रसन्न करु दाया। | शिव स्तुति | रामकली |
10 | 10 | मोह-तम-तरणि,हर,रुद्र,संकर | शिव स्तुति | धनाश्री |
11 | 11 | भीषणाकार,भैरव,भयंकर | शिव-स्तुति (भैरवरूप) | धनाश्री |
12 | 12 | सदा-शंकरं,शंप्रदं,सज्जनानंददं | शिव-स्तुति (भैरवरूप) | धनाश्री |
13 | 13 | सेवहु सिव-चरन-सरोज-रेनु। | शिव-स्तुति (भैरवरूप) | बसन्त |
14 | 14 | देखो देखो, बन बन्यो आजु उमाकंत। | शिव-स्तुति (भैरवरूप) | बसन्त |
15 | 15 | दुसह दोष-दुख,दलनि, करु देवि दाया। | देवी-स्तुति | मारु |
16 | 16 | जय जय जगजननि देवि | देवी-स्तुति | रामकली |
17 | 17 | जय जय भगीरथनन्दिनि, | गंगा-स्तुति | रामकली |
18 | 18 | जयति जय सुरसरी जगदखिल-पावनी। | गंगा-स्तुति | रामकली |
19 | 19 | हरनि पाप त्रिबिध ताप सुमिरत सुरसरित। | गंगा-स्तुति | रामकली |
20 | 20 | ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, | गंगा-स्तुति | रामकली |
21 | 21 | जमुना यों ज्यों ज्यों लागी बाढ़न। | यमुना-स्तुति | बिलावल |
22 | 22 | सेइअ सहित सनेह देह भरि, | काशी-स्तुति | भैरव |
23 | 23 | सब सोच-बिमोचन चित्रकूट। | चित्रकूट-स्तुति | बसन्त |
24 | 24 | अब चित चेति चित्रकूटहि चलु। | चित्रकूट-स्तुति | कान्हरा |
25 | 25 | जयत्यंजनी-गर्भ-अंभोधि-संभूत | हनुमत-स्तुति | धनाश्री |
26 | 26 | जयति मर्कटाधीश ,मृगराज-विक्रम, | हनुमत-स्तुति | धनाश्री |
27 | 27 | जयति मंगलागार, संसारभारापहर, | हनुमत-स्तुति | धनाश्री |
28 | 28 | जयति वात-संजात,विख्यात विक्रम, | हनुमत-स्तुति | धनाश्री |
29 | 29 | जयति निर्भरानंद-संदोह कपिकेसरी, | हनुमत-स्तुति | धनाश्री |
30 | 30 | जाके गति है हनुमानकी। | हनुमत-स्तुति | सारंग |
31 | 31 | ताकिहै तमकि ताकी ओर को। | हनुमत-स्तुति | गौरी |
32 | 32 | ऐसी तोही न बूझिये हनुमान हठीले। | हनुमत-स्तुति | बिलावल |
33 | 33 | समरथ सुअन समीरके,रघुबीर-पियारे। | हनुमत-स्तुति | बिलावल |
34 | 34 | अति आरत, अति स्वारथी, अति दीन-दुखारी। | हनुमत-स्तुति | बिलावल |
35 | 35 | कटु कहिये गाढे परे, सुनि समुझि सुसाईं। | हनुमत-स्तुति | बिलावल |
36 | 36 | मंगल-मूरति मारुत-नंदन। | हनुमत-स्तुति | गौरी |
37 | 37 | लाल लाडिले लखन, हित हौ जनके। | लक्ष्मण-स्तुति | दण्डक |
38 | 38 | जयति लक्ष्मणानंत भगवंत भूधर, भुजग- | लक्ष्मण-स्तुति | धनाश्री |
39 | 39 | जयति भूमिजा-रमण-पदकंज-मकरंद-रस- | भरत-स्तुति | धनाश्री |
40 | 40 | जयति जय शत्रु-करि-केसरी शत्रुहन, | शत्रुघ्न-स्तुति | धनाश्री |
41 | 41 | कबहुँक अंब, अवसर पाइ। | श्रीसीता-स्तुति | केदारा |
42 | 42 | कबहुँ समय सुधि द्ययाबी,मेरी मातु जानकी। | श्रीसीता-स्तुति | केदारा |
43 | 43 | जयति सच्चिदव्यापकानंद | श्रीराम-वन्दना-स्तुति | केदारा |
44 | 44 | जयति राज-राजेंद्र राजीवलोचन,राम | श्रीराम-वन्दना-स्तुति | केदारा |
45 | 45 | श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन | श्रीराम-वन्दना-स्तुति | गौरी |
46 | 46 | सदा राम जपु,राम जपु,राम जपु, | श्रीराम-नाम वन्दना | रामकली |
47 | 47 | ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन। | श्रीराम-आरती | रामकली |
48 | 48 | हरति सब आरती आरती रामकी। | श्रीराम-आरती | रामकली |
49 | 49 | दनुज-बन-दहन,गुन-गहन, | श्रीहरिशंकरी दण्डक | रामकली |
50 | 50 | भानुकुल-कमल-रवि,कोटि कंर्दप-छवि, | श्रीराम-स्तुति | रामकली |
51 | 51 | जानकीनाथ,रघुनाथ,रागादि-तम-तरणि, | श्रीराम-स्तुति | रामकली |
52 | 52 | कोशलाधीश,जगदीश,जगदेकहित, | श्रीराम-स्तुति | रामकली |
53 | 53 | सकल सौभाग्यप्रद सर्वतोभद्र-निधि, | श्रीराम-स्तुति | रामकली |
54 | 54 | विश्व-विख्यात,विश्वेश,विश्वायतन, | श्रीराम-स्तुति | रामकली |
55 | 55 | संत-संतापहर,विश्व-विश्रामकर, | श्रीराम-स्तुति | रामकली |
56 | 56 | दनुजसूदन दयासिंधु,दंभापहन | श्रीराम-स्तुति | रामकली |
57 | 57 | देहि सतसंग निज-अंग श्रीरंग! | श्रीरंग-स्तुति | रामकली |
58 | 58 | देहि अवलंब कर कमल,कमलारमन, | श्रीरंग-स्तुति | रामकली |
59 | 59 | दीन-उद्धरण रघुवर्य करुणाभवन | श्रीरंग-स्तुति | रामकली |
60 | 60 | नौमि नारायणं नरं करुणायनं, | श्रीनर-नारायण-स्तुति | रामकली |
61 | 61 | सकल सुखकंद, आनंदवन-पुण्यकृत, | श्रीविन्दुमाधव-स्तुति | रामकली |
62 | 62 | इहै परम फलु,परम बड़ाई। | श्रीविन्दुमाधव-स्तुति | आसावरी |
63 | 63 | मन इतनोई या तनुको परम फलु। | श्रीविन्दुमाधव-स्तुति | जैतश्री |
64 | 64 | बंदौ रघुपति करुना-निधान। | श्रीराम-वन्दना | बसन्त |
65 | 65 | राम राम रमु,राम राम रटु, | श्रीराम-नाम-जप | भैरव |
66 | 66 | राम जपु,राम जपु, राम जपु बावरे। | श्रीराम-नाम-जप | भैरव |
67 | 67 | राम राम जपु जिय सदा सानुराग रे। | श्रीराम-नाम-जप | भैरव |
68 | 68 | राम राम राम जीह जौलौं तू न जपिहै। | श्रीराम-नाम-जप | भैरव |
69 | 69 | सुमिरु सनेहसों तू नाम रामरायको। | श्रीराम-नाम-जप | भैरव |
70 | 70 | भलो भली भाँति है जो मेरे कहे लागिहै। | श्रीराम-नाम-जप | भैरव |
71 | 71 | ऐसेहू साहबकी सेवा सों होत चोरु रे। | विनयावली | भैरव |
72 | 72 | मेरो भलो कियो राम आपनी भलाई। | विनयावली | भैरव |
73 | 73 | जागु,जागु,जीव जड़! जोहै जग-जामिनी। | विनयावली | भैरव |
74 | 74 | जानकीसकी कृपा जगावती सुजान जीव, | विनयावली | विभास |
75 | 75 | खोटो खरो रावरो हौं,रावरी सौं, | विनयावली | ललित |
76 | 76 | रामको गुलाम,नाम रामबोला राख्यौ राम, | विनयावली | ललित |
77 | 77 | जानकी-जीवन,जग-जीवन,जगत-हित, | विनयावली | ललित |
78 | 78 | दीनको दयालु दानि दूसरो न कोऊ। | विनयावली | टोड़ी |
79 | 79 | तू दयालु ,दीन हौं तू दानि, हौं भिखारी। | विनयावली | टोड़ी |
80 | 80 | और काहि माँगिये, को माँगिबो निवारै। | विनयावली | टोड़ी |
81 | 81 | दीनबंधु, सुखसिंधु, कृपाकर, | विनयावली | टोड़ी |
82 | 82 | मोहजनित मल लाग बिबिध बिधि | विनयावली | टोड़ी |
83 | 83 | कछु ह्वे न आई गयो जनम जाय। | विनयावली | जैतश्री |
84 | 84 | तौ तू पछितैहै मन मींजि हाथ। | विनयावली | जैतश्री |
85 | 85 | मन! माधवको नेकु निहारहि। | विनयावली | धनाश्री |
86 | 86 | इहै कह्यो सुत! बेद चहूँ। | विनयावली | धनाश्री |
87 | 87 | सुनु मन मूढ सिखावन मेरो। | विनयावली | धनाश्री |
88 | 88 | कबहूँ मन बिश्राम न मान्यो। | विनयावली | धनाश्री |
89 | 89 | मेरो मन हरिजू! हठ न तजै। | विनयावली | धनाश्री |
90 | 90 | ऐसी मूढ़ता या मनकी। | विनयावली | धनाश्री |
91 | 91 | नाचत ही निसि-दिवस मर् यो। | विनयावली | धनाश्री |
92 | 92 | माधवजू,मोसम मंद न कोऊ। | विनयावली | धनाश्री |
93 | 93 | कृपा सो धौं कहाँ बिसारी राम। | विनयावली | धनाश्री |
94 | 94 | काहे ते हरि मोहिं बिसारो। | विनयावली | धनाश्री |
95 | 95 | तरु न मेरे अघ-अवगुन गनिहैं । | विनयावली | धनाश्री |
96 | 96 | जौ पै जिय धरिहौ अवगुन जनके । | विनयावली | धनाश्री |
97 | 97 | जौ पै हरि जनके औगुन गहते । | विनयावली | धनाश्री |
98 | 98 | ऐसी हरि करत दासपर प्रीति । | विनयावली | धनाश्री |
99 | 99 | बिरद गरीबनिवाज रामको । | विनयावली | धनाश्री |
100 | 100 | सुनि सीतापति-सील-सुभाउ। | विनयावली | धनाश्री |
101 | 101 | जाउँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे। | विनयावली | धनाश्री |
102 | 102 | हरि! तुम बहुत अनुग्रह कीन्हो। | विनयावली | धनाश्री |
103 | 103 | यह बिनती रघुबीर गुसाई। | विनयावली | धनाश्री |
104 | 104 | जानकी-जीवनकी बलि जैहौं। | विनयावली | धनाश्री |
105 | 105 | अबलौ नसानी, अब न नसैहौं। | विनयावली | धनाश्री |
106 | 106 | महाराज रामादर् यो धन्य सोई। | विनयावली | रामकली |
107 | 107 | है नीको मेरो देवता कोसलपति राम। | विनयावली | बिहाग,बिलावल |
108 | 108 | बीर महा अवराधिये, साधे सिधि होय। | विनयावली | बिहाग |
109 | 109 | कस न करहु करुना हरे! | विनयावली | बिहाग |
110 | 110 | कहु केहि कहिय कृपानिधे! | विनयावली | बिहाग |
111 | 111 | केसव! कहि न जाइ का कहिये। | विनयावली | बिहाग |
112 | 112 | केसव! कारन कौन गुसाई। | विनयावली | बिहाग |
113 | 113 | माधव! अब न द्रवहु केहि लेखे। | विनयावली | बिहाग |
114 | 114 | माधव! मो समान जग माहीं। | विनयावली | बिहाग |
115 | 115 | माधव! मोह-फाँस क्यों टूटै। | विनयावली | बिहाग |
116 | 116 | माधव! असि तुम्हारि यह माया । | विनयावली | बिहाग |
117 | 117 | हे हरि! कवन दोष तोहिं दीजै । | विनयावली | बिहाग |
118 | 118 | हे हरि ! कवन जतन सुख मानहु । | विनयावली | बिहाग |
119 | 119 | हे हरि ! कवन जतन भ्रम भागै । | विनयावली | बिहाग |
120 | 120 | हे हरि ! कस न हरहु भ्रम भारी । | विनयावली | बिहाग |
121 | 121 | हे हरि ! यह भ्रमकी अधिकाई । | विनयावली | बिहाग |
122 | 122 | मै हरि, साधन करइ न जानी । | विनयावली | बिहाग |
123 | 123 | अस कछु समुझि परत रघुराया ! | विनयावली | बिहाग |
124 | 124 | जौ निज मन परिहरै बिकारा। | विनयावली | बिहाग |
125 | 125 | मै केहि कहौं बिपति अति भारी। | विनयावली | बिहाग |
126 | 126 | मन मेरे,मानहि सिख मेरी। | विनयावली | बिहाग |
127 | 127 | मै जानी,हरिपद-रति नाहीं। | विनयावली | बिहाग |
128 | 128 | सुमिरु सनेह-सहित सीतापति। | विनयावली | बिहाग |
129 | 129 | रुचिर रसना तू राम राम | विनयावली | बिहाग |
130 | 130 | राम राम,राम राम, | विनयावली | बिहाग |
131 | 131 | पावन प्रेम राम-चरन-कमल | विनयावली | बिहाग |
132 | 132 | राम-से प्रीतमकी प्रीति-रहित | विनयावली | बिहाग |
133 | 133 | तोसो हौं फिरि फिरि हित,प्रिय, | विनयावली | बिहाग |
134 | 134 | ताते हौं बार बार देव! | विनयावली | बिहाग, बिलावल |
135 | 135.1 | राम सनेही सों तैं न सनेह कियो। | विनयावली | सूहो बिलावल |
136 | 135.2 | अजहूँ समुझि चित दै सुनु परमारथ। | विनयावली | सूहो बिलावल |
137 | 135.3 | दूरि न सो हितू हेरि हिये ही है। | विनयावली | सूहो बिलावल |
138 | 135.4 | ठाकुर अतिहि बड़ो,सील, | विनयावली | सूहो बिलावल |
139 | 135.5 | स्वामीको सुभाव कह्यो | विनयावली | सूहो बिलावल |
140 | 136.1 | जिव जबते हरितें बिलगान्यो। | विनयावली | सूहो बिलावल |
141 | 136.2 | आनँद-सिंधु-मध्य तव बासा। | विनयावली | सूहो बिलावल |
142 | 136.3 | तैं निज करम-डोरि दृढ़ कीन्हीं। | विनयावली | सूहो बिलावल |
143 | 136.4 | तू निज करम-जालल जहँ घेरो। | विनयावली | सूहो बिलावल |
144 | 136.5 | पुनि बहुबिधि गलानि जिय मानी। | विनयावली | सूहो बिलावल |
145 | 136.6 | बाल दसा जेते दुख पाये। | विनयावली | सूहो बिलावल |
146 | 136.7 | जोबन जुवती सँग रँग रात्यो। | विनयावली | सूहो बिलावल |
147 | 136.8 | देखत ही आई बिरुधाई। | विनयावली | सूहो बिलावल |
148 | 136.9 | कहि को सकै महाभव तेरे। | विनयावली | सूहो बिलावल |
149 | 136.1 | रघुपति-भगति सुलभ,सुखकारी। | विनयावली | सूहो बिलावल |
150 | 136.11 | सेवत साधु द्वैत-भय भागै। | विनयावली | सूहो बिलावल |
151 | 136.12 | जो तेहि पंथ चलै मन लाई। | विनयावली | सूहो बिलावल |
152 | 137 | जो पै कृपा रघुपति कृपालुकी, | विनयावली | बिलावल |
153 | 138 | कबहुँ सो कर-सरोज रघुनायक! | विनयावली | बिलावल |
154 | 139 | दीनदयालु,दुरित दारिद दुख | विनयावली | बिलावल |
155 | 140 | ते नर नरकरूप जीवत जग | विनयावली | बिलावल |
156 | 141 | रामचंद्र! रघुनायक तुमसों | विनयावली | बिलावल |
157 | 142 | सकुचत हौं अति राम कृपानिधि! | विनयावली | बिलावल |
158 | 143 | सुनहु राम रघुबीर गुसाई, | विनयावली | बिलावल |
159 | 144 | सो धौ को जो नाम-लाज ते, | विनयावली | बिलावल |
160 | 145 | कृपासिंधु! जन दीन दुवारे | विनयावली | बिलावल |
161 | 146 | हौं सब बिधि राम, | विनयावली | बिलावल |
162 | 147 | कृपासिंधु ताते रहौं निसिदिन | विनयावली | बिलावल |
163 | 148 | कहौ कौन मुहँ लाइ कै | विनयावली | बिलावल |
164 | 149 | कहाँ जाउँ, कासों कहौं, | विनयावली | बिलावल |
165 | 150 | रामभद्र! मोहिं आपनो सोच | विनयावली | बिलावल |
166 | 151 | जो पै चेराई रामकी करतो | विनयावली | बिलावल |
167 | 152 | राम भलाई आपनी भल कियो | विनयावली | बिलावल |
168 | 153 | मेरे रावरियै गति है रघुपति | विनयावली | बिलावल |
169 | 154 | देव ! दूसरो कौन दीनको | विनयावली | बिलावल |
170 | 155 | बिस्वास एक राम-नामको । | विनयावली | सारंग |
171 | 156 | कलि नाम कामतरु रामको । | विनयावली | सारंग |
172 | 157 | सेइये सुसाहिब राम सो । | विनयावली | सारंग |
173 | 158 | कैसे देउँ नाथहिं खोरि । | विनयावली | नट |
174 | 159 | है प्रभु ! मेरोई सब दोसु । | विनयावली | नट |
175 | 160 | मैं हरि पतित-पावन सुने । | विनयावली | नट |
176 | 161 | तों सों प्रभु जो पै कहुँ कोउ होतो । | विनयावली | मलार |
177 | 162 | ऐसो को उदार जग माहीं । | विनयावली | सोरठ |
178 | 163 | एकै दानि-सिरोमनि साँचो। | विनयावली | सोरठ |
179 | 164 | जानत प्रीति-रीति रघुराई। | विनयावली | सोरठ |
180 | 165 | रघुबर! रावरि यहै बड़ाई। | विनयावली | सोरठ |
181 | 166 | ऐसे राम दीन-हितकारी। | विनयावली | सोरठ |
182 | 167 | रघुपति-भगति करत कठिनाई। | विनयावली | सोरठ |
183 | 168 | जो पै राम-चरन-रति होती। | विनयावली | सोरठ |
184 | 169 | जो मोही राम लागते मीठे। | विनयावली | सोरठ |
185 | 170 | यों मन कबहूँ तुमहिं न लाग्यो। | विनयावली | सोरठ |
186 | 171 | कीजै मोको जमजातनामई। | विनयावली | सोरठ |
187 | 172 | कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो। | विनयावली | सोरठ |
188 | 173 | नाहिंन आवत आन भरोसो। | विनयावली | सोरठ |
189 | 174 | जाके प्रिय न राम-बैदेही। | विनयावली | सोरठ |
190 | 175 | रहनि जो पै लगन रामसों नाहीं। | विनयावली | सोरठ |
191 | 176 | राख्यो राम सुस्वामी सों | विनयावली | सोरठ |
192 | 177 | जो तुम त्यागों राम हौं तौं | विनयावली | सोरठ |
193 | 178 | भयेहूँ उदास राम, मेरे आस रावरी। | विनयावली | सोरठ |
194 | 179 | कहाँ जाउँ, कासों कहौ, कौन सुनै दीनकी। | विनयावली | बिलावल |
195 | 180 | बारक बिलोकि बलि कीजै मोहिं आपनो। | विनयावली | बिलावल |
196 | 181 | केहू भाँति कृपासिंधु मेरी ओर हेरिये। | विनयावली | बिलावल |
197 | 182 | नाथ ! गुननाथ सुनि होत चित चाउ सो। | विनयावली | बिलावल |
198 | 183 | राम! प्रीतिकी रीति आप नीके जनियत है। | विनयावली | आसावरी |
199 | 184 | राम-नामके जपे जाइ जियकी जरनि। | विनयावली | आसावरी |
200 | 185 | लाज न लागत दास कहावत। | विनयावली | आसावरी |
201 | 186 | कौन जतन बिनती करिये। | विनयावली | आसावरी |
202 | 187 | ताहि तें आयो सरन सबेरें। | विनयावली | आसावरी |
203 | 188 | मैं तोहिं अब जान्यो संसार। | विनयावली | आसावरी |
204 | 189 | राम कहत चलु, राम कहत चलु, | विनयावली | गौरी |
205 | 190 | सहज सनेही रामसों | विनयावली | गौरी |
206 | 191 | एक सनेही साचिलो केवल | विनयावली | गौरी |
207 | 192 | जो पै जानकिनाथ सों नातो | विनयावली | गौरी |
208 | 193 | अजहुँ आपने रामके करतब | विनयावली | गौरी |
209 | 194 | जो अनुराग न राम सनेही सों। | विनयावली | गौरी |
210 | 195 | बलि जाउँ हौं राम गुसाईं। | विनयावली | गौरी |
211 | 196 | काहेको फिरत मन, | विनयावली | गौरी |
212 | 197 | नाहिन चरन-रति ताहि तें | विनयावली | गौरी |
213 | 198 | मन पछितैहै अवसर बीते। | विनयावली | भैरवी |
214 | 199 | काहे को फिरत मूढ़ मन धायो। | विनयावली | भैरवी |
215 | 200 | ताँबे सो पीठि मनहुँ तन पायो। | विनयावली | भैरवी |
216 | 201 | लाभ कहा मानुष-तनु पाये। | विनयावली | भैरवी |
217 | 202 | काजु कहा नरतनु धरि सार् यो। | विनयावली | भैरवी |
218 | 203 | श्रीहरि-गुरु-पद-कमल | विनयावली | भैरवी |
219 | 204 | जो मन लागै रामचरन अस। | विनयावली | कान्हरा |
220 | 205 | जो मन भज्यो चहै हरि-सुरतरु। | विनयावली | कान्हरा |
221 | 206 | नाहिन और कोउ सरन लायक | विनयावली | कान्हरा |
222 | 207 | भजिबे लायक, सुखदायक रघुनायक | विनयावली | कान्हरा |
223 | 208 | नाथ सों कौन बिनती कहि सुनावौं। | विनयावली | कल्याण |
224 | 209 | नाहिनै नाथ! अवलंब मोहि आनकी। | विनयावली | कल्याण |
225 | 210 | औरु कहँ ठौरु रघुबंस-मनि! मेरे। | विनयावली | कल्याण |
226 | 211 | कबहुँ रघुबंसमनि ! | विनयावली | कल्याण |
227 | 212 | रघुपति बिपति-दवन। | विनयावली | केदारा |
228 | 213 | हरि-सम आपदा-हरन। | विनयावली | केदारा |
229 | 214 | ऐसी कौन प्रभुकी रीति ? | विनयावली | कल्याण |
230 | 215 | श्रीरघुबीरकी यह बानि। | विनयावली | कल्याण |
231 | 216 | हरि तज और भजिये काहि ? | विनयावली | कल्याण |
232 | 217 | जो पै दूसरो कोउ होइ। | विनयावली | कल्याण |
233 | 218 | कबहि देखाइहौ हरि चरन। | विनयावली | कल्याण |
234 | 219 | द्वार हौं भोर ही को आजु। | विनयावली | कल्याण |
235 | 220 | करिय सँभार, कोसलराय! | विनयावली | कल्याण |
236 | 221 | नाथ! कृपाहीको पंथ चितवत | विनयावली | कल्याण |
237 | 222 | बलि जाउँ, और कासों कहौं ? | विनयावली | कल्याण |
238 | 223 | आपनो कबहुँ करि जानिहौ। | विनयावली | कल्याण |
239 | 224 | रघुबरहि कबहुँ मन लागिहै ? | विनयावली | कल्याण |
240 | 225 | भरोसो और आइहै उर ताके। | विनयावली | कल्याण |
241 | 226 | भरोसो जाहि दूसरो सो करो। | विनयावली | कल्याण |
242 | 227 | नाम राम रावरोई हित मेरे। | विनयावली | कल्याण |
243 | 228 | प्रिय रामनामतें जाहि न रामो। | विनयावली | कल्याण |
244 | 229 | गरैगी जीह जो कहौं औरको हौं। | विनयावली | कल्याण |
245 | 230 | अकारन को हितू और को है। | विनयावली | कल्याण |
246 | 231 | और मोहि को है, काहि कहिहौं ? | विनयावली | कल्याण |
247 | 232 | दीनबंधु दूसरो कहँ पावो ? | विनयावली | कल्याण |
248 | 233 | मनोरथ मनको एकै भाँति। | विनयावली | कल्याण |
249 | 234 | जनम गयो बादिहिं बर बीति। | विनयावली | कल्याण |
250 | 235 | ऐसेहि जनम-समूह सिराने। | विनयावली | कल्याण |
251 | 236 | जो पै जिय जानकी-नाथ न जाने। | विनयावली | कल्याण |
252 | 237 | काहे न रसना, रामहि गावहि ? | विनयावली | कल्याण |
253 | 238 | आपनो हित रावरेसों जो पै सूझै। | विनयावली | कल्याण |
254 | 239 | जाको हरि दृढ़ करि अंग कर् यो। | विनयावली | कल्याण |
255 | 240 | सोइ सुकृती,सुचि साँचो | विनयावली | कल्याण |
256 | 241 | तब तुम मोहूसे सठनिको | विनयावली | कल्याण |
257 | 242 | तुम सम दींनबंधु,न दीन कोउ | विनयावली | कल्याण |
258 | 243 | यहै जानि चरनन्हि चित लायो। | विनयावली | कल्याण |
259 | 244 | याहि ते मैं हरि ग्यान गँवायो। | विनयावली | कल्याण |
260 | 245 | मोहि मूढ़ मन बहुत बिगोयो। | विनयावली | कल्याण |
261 | 246 | लोक-बेद हूँ बिदित बात सुनि-समुझि। | विनयावली | कल्याण |
262 | 247 | राम जपु जीह! जानि, प्रीति | विनयावली | कल्याण |
263 | 248 | पाहि,पाहि राम! पाहि रामभद्र | विनयावली | कल्याण |
264 | 249 | भली भाँति पहिचाने- | विनयावली | कल्याण |
265 | 250 | तौं हौं बार बार प्रभुहि पुकारिकै | विनयावली | कल्याण |
266 | 251 | राम! रावरो सुभाउ, | विनयावली | कल्याण |
267 | 252 | बाप! आपने करत मेरी घनी घटि गई। | विनयावली | कल्याण |
268 | 253 | राम राखिये सरन, राखि आये सब दिन। | विनयावली | कल्याण |
269 | 254 | राम! रावरो नाम मेरो मातु-पितु है। | विनयावली | कल्याण |
270 | 255 | राम!रावरो नाम साधु-सुरतरु है। | विनयावली | कल्याण |
271 | 256 | कहे बिनु रह्यो न परत, | विनयावली | कल्याण |
272 | 257 | दीनबंधु! दूरि किये दीनको | विनयावली | कल्याण |
273 | 258 | जानि पहिचानि मैं बिसारे हौं | विनयावली | कल्याण |
274 | 259 | रावरी सुधारी जो बिगारी बिगरैगी | विनयावली | कल्याण |
275 | 260 | साहिब उदास भये दास खास | विनयावली | कल्याण |
276 | 261 | मेरी न बनै बनाये मेरे कोटि कलप लौं, | विनयावली | कल्याण |
277 | 262 | कह्यो न परत,बिनु कहे न रह्यो परत, | विनयावली | कल्याण |
278 | 263 | नाथ नीके कै जानिबी ठीक | विनयावली | कल्याण |
279 | 264 | मेरो कह्यो सुनि पुनि भावै | विनयावली | कल्याण |
280 | 265 | तन सुचि,मनरुचि, मुख कहौं | विनयावली | कल्याण |
281 | 266 | ज्यों ज्यों निकट भयो चहौं | विनयावली | कल्याण |
282 | 267 | पन करि हौं हठि आजुतें | विनयावली | कल्याण |
283 | 268 | तुम अपनायो तब जानिहौं, | विनयावली | कल्याण |
284 | 269 | राम कबहुँ प्रिय लागिहौ | विनयावली | कल्याण |
285 | 270 | कबहुँ कृपा करि रघुबीर! | विनयावली | कल्याण |
286 | 271 | जैसो हौं तैसो राम रावरो | विनयावली | कल्याण |
287 | 272 | तुम जनि मन मैलो करो, | विनयावली | कल्याण |
288 | 273 | तुम तजि हौं कासों कहौं, | विनयावली | कल्याण |
289 | 274 | जाउँ कहाँ, ठौर है कहाँ देव! | विनयावली | कल्याण |
290 | 275 | द्वार द्वार दीनता कही, | विनयावली | कल्याण |
291 | 276 | कहा न कियो,कहाँ न गयो, | विनयावली | कल्याण |
292 | 277 | राम राय! बिनु रावरे मेरे को | विनयावली | कल्याण |
293 | 278 | पवन-सुवन! रिपु-दवन! | विनयावली | कल्याण |
294 | 279 | मारुति-मन,रुचि भरतकी | विनयावली | कल्याण |